यदि कृष्ण कथा को आधुनिक मनोवैज्ञानिक नजरिये से देखें तो अपनी प्रतिभा और सूझ बूझ से लोगों को चमत्कृत और उपकृत करने वाले नायक का विकास साफ देखा जा सकता है। कृष्ण अपने मित्रों को गाढ़े मे काम आते हैं और उन्हीं ग्रामीण लोगों को सेना मे बदल देते हैं । कृष्ण मे यदि वासना होती तो जरूर ईर्ष्या भाव भी वहाँ मिलता । कृष्ण मे बाल-सुलभ खिलन्दडा पन और अकुण्ठ मैत्री भाव है । मध्यकालीन अन्धकार युग ने उनके व्यक्तित्व का बहुत पतन कराया है ।
कृष्ण इसलिए लोक का अपार प्रेम पा सके क्योकि उनहोंने लोक को स्वयं का पालन-पोषण करने वाले अभिभावक के रूप मे देखा । वे लोक से अपने स्नेहपूर्ण रिश्ते को अन्त तक जीते रहे और लोक को सामन्त राजाओ की तरह शासित करने की कोशिश कभी नहीं की । वे लोक- कृतज्ञ जननायक है जिसने बराबरी के भाव को सम्मान देते हुए दूसरों को अपमानित करने वाला कोई भी बडप्पन और अहंकार जीने से इन्कार कर दिया था । राजसूय यज्ञ के समय वे दूसरों का जूठा पत्तल उठाने का दायित्व संभालते है । यह अत्यन्त सांकेतिक किन्तु जनता से कटकर अलग-थलग बडा दिखने की आभिजात्य मानसिकता का पूरी तरह बहिष्कार था । द्वारिका के गणतंत्र मे भी बलराम को प्रमुख बनाकर स्वयं स्वतंत्र सहयोगी की तरह रहे ।वे व्यवस्था निर्माण के तो नहीं लेकिन लोक की जीवन- पद्धति के निर्माण के दार्शनिक चिन्तक की भूमिका में आद्यन्त बने रहे ।
उनके गोबर्धन पर्वत उठाने का प्रसंग मुझे अतिवृष्टि और बाढ़ के समय अपने परिश्रम द्वारा जन और जानवरों को उॅचे पहाड़ी भूभाग पर सुरक्षित पहुचाने के लिए रास्ता बनाने की घटना से सम्बन्धित लगता है । जिसमे इतनी बड़ी शिलाएँ उठायी हो कि मानवीय शक्ति के लिए अविश्वसनीय रहा हो ।
कृष्ण को सोलह हजार रानियां भी एक पहाड़ी राजा को युद्ध मे मारे जाने के बाद उसके रनिवास मे मिली थी। कृष्ण ने उन्हे विधवा होने के बाद राज्याश्रय दिया था । यह पुनर्वास जैसा कदम था । इन महिलाओं ने कृष्ण को पति यानि स्वामी का दर्ज़ा दिया था । कृष्ण की वास्तविक रानियां रुक्मिणी सत्यभामा आदि कम ही थी ।
चरित्र, संयम,उदारता,लोककल्याण,दया और करुणा भाव यानि संवेदनशीलता के अभाव मे कोई भी उस स्तर का लोकनायक नहीं बन सकता कि उसे भगवान का दर्जा जनता देती।
जीवन का रास्ता चिन्तन का है । चिन्तन जीवन की आग है तो विचार उसका प्रकाश । चिन्तन का प्रमुख सूत्र ही यह है कि या तो सभी मूर्ख हैं या धूर्त या फिर गलत । नवीन के सृजन और ज्ञान के पुन:परीक्षण के लिए यही दृष्टि आवश्यक है और जीवन का गोपनीय रहस्य । The Way of life is the way of thinking.Thinking is the fire of life And thought is the light of the life. All are fool or cheater or all are wrong.To create new and For rechecking of knowledge...It is the view of thinking and secret of life.
रविवार, 14 अक्तूबर 2018
कृष्ण
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