कक्षा में गोरखनाथ और कुण्डलिनी जागरण से सम्बंधित की गयी अपनी एक टिप्पणी याद आ रही है ,जिसमें मैंने कहा था कि लाखों वर्षों के विकासक्रम में भटकने और बिछुड़ने के बावजूद मस्तिष्क से लेकर पूंछ तक कुत्ता, बिल्ली ,भैस ,शेर,बन्दर और आदमी भी सभी सांप के ही विकासात्मक रूपांतर और विविध रूप लगते हैं | देखा जाय तो सांप का विष भी उसकी लार ही है और इन्सान का विष उसके क्रोध के रूप में उसके दिमाग में चला गया है | वैसे तो वह निर्विष सांप की तरह है ,क्योंकि उसके काटने से कोई नहीं मरता लेकिन उसने मारने के नए तरीके विकसित कर लिए हैं | सांप सरीसृप है ,उसमें अविकसित हाथ और पैर के अवशेष तो मिलते हैं लेकिन पूँछ वाले अन्य जानवरों और आदमी के तंत्रिका तंत्र में हाथ और पैर के लिए दो शाखाओं के रूप में अलग या अतिरिक्त रूप से तंत्रिका तंत्र का विस्तार हुआ है | बाकी सभी कुछ सर्पवत ही है | दो आँखे ,दो नाक ,जीभ फेफड़े ,स्त्री-पुरुष सभी मनुष्य की तरह ही है |
जब कभी मैं किसी को मोटर सायकिल चलाते हुए देखता हूँ और इस नजरिए से सोचता हूँ कि प्रकृति का कैसा चमत्कार है कि सांप की प्रजाति की ही एक शाखा जैविक रूप से विकसित और परिष्कृत होकर आज मोटर सायकिल और वायुयान चला रही है,एक-दूसरे से लड़ते हुए एक-दूसरे की हत्याएं कर रही है तो प्रकृति के विकास क्रम पर रोमांचित और अभिभूत हो जाता हूँ ....
जब कभी मैं किसी को मोटर सायकिल चलाते हुए देखता हूँ और इस नजरिए से सोचता हूँ कि प्रकृति का कैसा चमत्कार है कि सांप की प्रजाति की ही एक शाखा जैविक रूप से विकसित और परिष्कृत होकर आज मोटर सायकिल और वायुयान चला रही है,एक-दूसरे से लड़ते हुए एक-दूसरे की हत्याएं कर रही है तो प्रकृति के विकास क्रम पर रोमांचित और अभिभूत हो जाता हूँ ....