शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

हिंदुत्व-विमर्श

कोई श्रेष्ठ सभ्यता यदि अपनी विशेषताएँ भूलकर प्रतिक्रिया में जब किसी अन्य समुदाय की बुराइयाँ अपनाने लगे तो इससे बड़ा दुर्भाग्य नहीं हो सकता | इससे दोहरी क्षति होती है -वह सभ्यता अपने वास्तविक स्वरूप से भटक जाती है ,वह प्रतिक्रिया में दूसरे समुदाय की बुराइयाँ अपनाने लगती है | हिंदुत्व को लेकर कुछ भी चिंतन करने पर मित्र बुरा मानने लगते हैं यही दिक्कत इस्लामी समुदाय के साथ भी है | हिंदुत्व के मुद्दे पर मेरी असहमति मात्र इतनी ही है कि इस्लाम समुदाय,देशों और उनकी राजनीति की भी मूल-प्रकृति कबीलाई है ;ऐतिहासिक कारणों से ही सही प्रतिक्रिया और अनुकरण में भारतीय सभ्यता को भी हिंदुत्व के एक बन्द कबीले के रूप में विकसित करने या ढालने का प्रयास नहीं होना चाहिए | इससे हम प्रतिगामी हो जाएँगे और डेढ़ हजार वर्ष पीछे की मानसिकता को जीने वाले एक बड़ी जनसंख्या के बेमतलब प्रतिस्पर्धी एवं प्रतिरूप बन जाएंगे जो सवयम परिवर्तन और आधुनिकता को सही ढंग से जी और समझ नहीं पा रहा है | हमारे वर्तमान नीति नियंता इसके प्रति कितने सजग हैं ,यह अभी भविष्य के गर्भ में है |