गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

अच्छे दिन और ...

क्या बिकना इतना जरुरी है कि
बिना बिके जिया ही न जाय !
या जीने के लिए ही बिकना बहुत जरुरी है ?
हम जीने के लिए हांफते रहें या बिकने के लिए ...
तुम रोज गिनते हो कि इतने लोग बिके
वह रोज गिनता है कि वह आज भी बिकने से बच गया
यह जरुरी नहीं है कि जो न बिके वह ख़राब माल ही हो
बहुत कीमती चीजें भी बिकने से रह जाया करती हैं
अपने सबसे महंगे खरीदार की प्रतीक्षा में
और जिसने बिकने से इंकार कर दिया हो
और जो मूल्यांकन के लिए भी उपलब्ध नहीं है
बिकाऊ नहीं है जो
पड़ा है किसी घर में बाजार से दूर
बाजार से बाहर
क्या वह समय में नहीं है ?
सिर्फ प्रतीक्षा करो चचा !
अपने अच्छे दिन आने की
प्रार्थना करो कि उसके बुरे दिन जल्दी आए
या फिर परिस्थितियों की घेराबंदी में वह घुटने टेक दे
कि किसी सुबह तुम दूकान खोलो
और वह बिकने के लिए हाजिर दिखे तुम्हारी देहरी पर !
दूकान खोलकर बैठे रहो चचा !
उसे अभी बिकना नहीं हैं
न ही किसी को खरीदने जाना है बाजार ...