यह कविता
कर्इ कवियों के व्यकितगत जीवन
के सर्वेक्षण पर आधारित
एक तथ्यात्मक विचार मात्र है !
सर्वेक्षण में अधिकांश कवि दूसरों के प्रति
सामान्य से अधिक शिकायतों से भरे थे
वे दूसरों के प्रति बहुत अधिक अपेक्षाओं से भरे थे
वैसे तो थे वे दुनिया के सबसे संवेदनशील प्राणी
दु:ख के तापमापी यन्त्र की तरह
डूबते-उतराते हुए अपने ही भीतर व्याप्त दु:ख में.....
अधिकांश कवि इतने आत्मकेनिद्रत थे कि
दूसरों के दु:ख के प्रति संवेदनशील और र्इमानदार रह पाना
उनके लिए संभव ही नहीं था.......
उनके असन्तोष का स्तर इतना अधिक था कि
उनके आस-पास के लोग
वंचित होते हुए भी सन्तुष्ट और सुखी होने की सीमा तक
चुपचाप जीना सीख गए थे....
अधिकांश कवि बहुत भीतर से
चालाक और सतर्क थे
लेकिन बाहर से वे बेवकूफ और बेकार
प्रचारित हो गए थे
दूसरे शब्दों में वे मजाक के स्तर पर
कवि होने के लिए याद किए जाते थे......
अधिकांश कवि दूसरों के बारे में
सोचने के प्राय: अयोग्य होते हैं
लेकिन वे अपने बारे में इतनी गहरार्इ से सोचते हैें कि
उनका सोचना सबका सोचना बन जाता है
सवेक्षण से यह भी पता वला कि
यधपि सारे कवि आत्मकेनिद्रत होते हैं
लेकिन उनका रोना इतनी दूर तक
दूसरों को सम्बोधित होता है कि
प्राय: उनके आत्मकेनिद्रत होने की ओर
हमारा ध्यान ही नहीं जाता....
दूसरे शब्दों में
बचपन में सबसे ज्यादा रोने वाले बच्चों के
कवि होने की संभावना ज्यादा होती है....
अच्छे कवि इतना अच्छा रोते हैं कि
उनका रोना हमारे समय का
प्रामाणिक रोना बन जाता है....
इसतरह रोते हैं कि उनका रोना
सारी दुनिया का रोना बन जाता है ।
कर्इ कवियों के व्यकितगत जीवन
के सर्वेक्षण पर आधारित
एक तथ्यात्मक विचार मात्र है !
सर्वेक्षण में अधिकांश कवि दूसरों के प्रति
सामान्य से अधिक शिकायतों से भरे थे
वे दूसरों के प्रति बहुत अधिक अपेक्षाओं से भरे थे
वैसे तो थे वे दुनिया के सबसे संवेदनशील प्राणी
दु:ख के तापमापी यन्त्र की तरह
डूबते-उतराते हुए अपने ही भीतर व्याप्त दु:ख में.....
अधिकांश कवि इतने आत्मकेनिद्रत थे कि
दूसरों के दु:ख के प्रति संवेदनशील और र्इमानदार रह पाना
उनके लिए संभव ही नहीं था.......
उनके असन्तोष का स्तर इतना अधिक था कि
उनके आस-पास के लोग
वंचित होते हुए भी सन्तुष्ट और सुखी होने की सीमा तक
चुपचाप जीना सीख गए थे....
अधिकांश कवि बहुत भीतर से
चालाक और सतर्क थे
लेकिन बाहर से वे बेवकूफ और बेकार
प्रचारित हो गए थे
दूसरे शब्दों में वे मजाक के स्तर पर
कवि होने के लिए याद किए जाते थे......
अधिकांश कवि दूसरों के बारे में
सोचने के प्राय: अयोग्य होते हैं
लेकिन वे अपने बारे में इतनी गहरार्इ से सोचते हैें कि
उनका सोचना सबका सोचना बन जाता है
सवेक्षण से यह भी पता वला कि
यधपि सारे कवि आत्मकेनिद्रत होते हैं
लेकिन उनका रोना इतनी दूर तक
दूसरों को सम्बोधित होता है कि
प्राय: उनके आत्मकेनिद्रत होने की ओर
हमारा ध्यान ही नहीं जाता....
दूसरे शब्दों में
बचपन में सबसे ज्यादा रोने वाले बच्चों के
कवि होने की संभावना ज्यादा होती है....
अच्छे कवि इतना अच्छा रोते हैं कि
उनका रोना हमारे समय का
प्रामाणिक रोना बन जाता है....
इसतरह रोते हैं कि उनका रोना
सारी दुनिया का रोना बन जाता है ।