ईश्वर
जीवन का रास्ता चिन्तन का है । चिन्तन जीवन की आग है तो विचार उसका प्रकाश । चिन्तन का प्रमुख सूत्र ही यह है कि या तो सभी मूर्ख हैं या धूर्त या फिर गलत । नवीन के सृजन और ज्ञान के पुन:परीक्षण के लिए यही दृष्टि आवश्यक है और जीवन का गोपनीय रहस्य । The Way of life is the way of thinking.Thinking is the fire of life And thought is the light of the life. All are fool or cheater or all are wrong.To create new and For rechecking of knowledge...It is the view of thinking and secret of life.
बुधवार, 6 दिसंबर 2023
सोमवार, 4 दिसंबर 2023
भारतीय संस्कृति का पक्ष
संस्कृत जैसी व्यवस्थित भाषा का विकास करने मे सक्षम भारतीय धर्म तथा संस्कृति(मूर्ति, मन्दिर एवं पूजा पद्धति आदि ) अपनी प्रकृति मे प्रतीकात्मक तथा चारित्रिक आख्यान के रूप मे होने से प्रायः साहित्यिक प्रकृति के हैं । इसीलिए मै इन्हे कबीलाई धर्मों की तरह विशुद्ध अन्धविश्वास की तरह ही नहीं देख पाता । भाषावैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक आधारो पर मै मिथकीय प्रतीकों के कूट अर्थ को तोडने का प्रयास करता रहता हूँ । ऐसा करने की प्रेरणा मुझे उन कबाडियो से मिलती है जो निष्प्रयोज्य के विसर्जन से पहले उनमें से धातुओं को निकाल लेते हैं । मैं यह नहीं भूलता कि बुद्ध काल तक हमारा अतीत विचारपूर्ण बहसों का था। साधना का लक्ष्य जीवन का परिष्कार था और कपिल , चार्वाक और वृहस्पति जैसे अनीश्वरवादी चिन्तक भी हुए हैं ।
रविवार, 3 दिसंबर 2023
मूर्ति-पूजा और भारतीय धर्म की प्रकृति
धर्म और ईश्वर
धर्म और ईश्वर : मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य
रामकथा , तुलसीदास और विशिष्टाद्वैतवाद
11/11/2023
तुलसीदास की पंक्तियां उनके काव्य-ग्रन्थ 'राम चरित मानस की व्यापक स्वीकृति और प्रसिद्धि के साथ स्वतंत्र सूक्तियों के रूप में इश्तेमाल होने लगी । इसलिए ऐसी सूक्तियां बाद की पाठक पीढियों के लिए भंयकर दुष्परिणाम लाने वाली हुई । तुलसी का काव्य-साहित्य धार्मिक संविधान की तरह पढा गया है और इसमें सन्देह नहीं कि उसका संदर्भित समुदायों को अपमानित करने के लिए भी दुरुपयोग होता रहा है। उत्पीड़न की घटिया मानसिकता का पोषण और विज्ञापन करता रहा है -वह भी प्रबन्ध काव्य की मंशा के विपरीत । क्योंकि प्रताड़ना की घोषणा बिना अपराध बताए सिर्फ लिंग और वर्ण की अयाचित-अपरिहार्य सदस्यता के आधार पर विवादित पंक्तियों में हुई है - इसीलिए अपनी अशील व्याप्ति में गंभीर और चिंतनीय भी है । वह कथा-काव्य में भले दृष्टांत रूप में सहज उपस्थित हो गया हो । उससे इतना तो सत्यापित होता ही है कि हमारा मध्ययुगीन समाज किस सीमा तक असभ्य, घटिया और अनैतिक रूप से भेद-भाव करने वाला पूर्वाग्रही तथा आपराधिक था । इसमें तुलसीदास की भूमिका एक कैमरामैन जैसी होने के बावजूद। जहां महाकवि के नियंत्रण के बाहर भारतीय समाज की कलुषित मानसिकता लोकोक्ति के माध्यम से ही व्यक्त हो गयी है ।
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अभिनव कदम - अंक २८ संपादक -जय प्रकाश धूमकेतु में प्रकाशित हिन्दी कविता में किसान-जीवन...
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संवेद 54 जुलार्इ 2012 सम्पादक-किशन कालजयी .issn 2231.3885 Samved आज के समाजशास्त्रीय आलोचना के दौर में आत्मकथा की विधा आलोचकों...
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पाखी के ज्ञानरंजन अंक सितम्बर 2012 में प्रकाशित ज्ञानरंजन की अधिकांश कहानियों के पाठकीय अनुभव की तुलना शाम को बाजार या पिफर किसी मे...