भारतीय सभ्यता ने जिस वैवाहिक तन्त्र को मान्यता दी थी वह ठीक ठीक पुरुष प्रधान भी नहीं था । युवकों से ब्रह्मचर्य की अपेक्षा करने वाली इस सभ्यता ने युवको को प्रेम निवेदन और विवाह प्रस्ताव देने का अधिकार ही नहीं दिया । न ही युवकों के पिता को ही । लड़की पक्ष से प्रस्ताव आने पर लड़के पक्ष द्वारा उसे स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार उसे अवश्य प्राप्त है । मिथको से लेकर आज तक की फिल्मों में भी ऐसे प्रेमियों को मन दुर्बल मानकर नारद और रावण जैसी खलनायक की भूमिका ही अधिक दी गयी है ।
वादाखिलाफी के खतरों को देखते हुए मे आदर्श मुक्ति के लिए भी एक सभ्य समाज बनाना होग। असामाजिक और अराजक मुक्ति मुझे अधिक ख़तरनाक लगती है । जंगल मे जैसे शिकारी शेर किसी भैंस का शिकार करने के पहले उसे झुंड से दूर ले जाता और अकेला करता है ( रामकथा मे सीता का हरण भी रावण इसी विधि से करता है ) देहबाजार के शातिर देहदस्यु भी पहले झांसा देकर सामाजिक बन्धनो से दूर करते हैं, त्रासदी यह घटती है कि उसका थका और अपमानित परम्परागत सामाजिक- पारिवारिक तन्त्र सज़ा देने की भावना से सहायता के क्षणों में दुर्दशा का दण्ड प्राप्त करने के लिए अकेला छोड़ देता है ।
जब तक जन्म लेते ही सभी की जीन मैपिग करा लेने की सामर्थ्य सरकारों मे न आ जाए अवैध या धोखेबाज पुरुषो का आपराधिक भ्रूण क्योंकि स्त्री लैंगिकता मे ही पलना है सुरक्षात्मक निषेध या सावधानियाँ मुझे स्त्री विरोधी नहीं लगती । यह संदिग्ध इसलिए भी लगता है कि लंपट चरित्र वाले स्त्री और पुरुष ही उपभोक्तावादी नजरिये से ही स्त्री की मुक्ति का प्रश्न अधिक उठाते हैं ।
जीवन का रास्ता चिन्तन का है । चिन्तन जीवन की आग है तो विचार उसका प्रकाश । चिन्तन का प्रमुख सूत्र ही यह है कि या तो सभी मूर्ख हैं या धूर्त या फिर गलत । नवीन के सृजन और ज्ञान के पुन:परीक्षण के लिए यही दृष्टि आवश्यक है और जीवन का गोपनीय रहस्य । The Way of life is the way of thinking.Thinking is the fire of life And thought is the light of the life. All are fool or cheater or all are wrong.To create new and For rechecking of knowledge...It is the view of thinking and secret of life.
बुधवार, 23 जनवरी 2019
स्त्री मुक्ति का प्रश्न
-
अभिनव कदम - अंक २८ संपादक -जय प्रकाश धूमकेतु में प्रकाशित हिन्दी कविता में किसान-जीवन...
-
संवेद 54 जुलार्इ 2012 सम्पादक-किशन कालजयी .issn 2231.3885 Samved आज के समाजशास्त्रीय आलोचना के दौर में आत्मकथा की विधा आलोचकों...
-
पाखी के ज्ञानरंजन अंक सितम्बर 2012 में प्रकाशित ज्ञानरंजन की अधिकांश कहानियों के पाठकीय अनुभव की तुलना शाम को बाजार या पिफर किसी मे...