हम धरती के घूमते विस्तार के सामने बौने हैं
हम पहाड़ के चरणों मे
महसूस करते हैं
अपने अस्तित्व का बौनापन
हम समुद्र के दैत्याकार विस्तार
और उसकी हहकारती विशाल लहरों के आगे बौने हैं
हम अपनी प्रजाति के अनतहीन जीवित विस्तार के आगे बौने हैं
हम अन्तरिक्ष की उन्मुक्त उन्नत उड़ान के आगे बौने हैं
अपनी सापेक्ष ऊंचाई के बावजूद !
रामप्रकाश कुशवाहा
06/11/2018