देवी
वह थकी हुई है
शान्ति के लिए जा रही है
दुनिया के जंजालो से ऊब कर
विश्राम के लिए
पहाड़ के सबसे ऊंचे शिखर पर बसी
पत्थर की देवी के पास
अपनी स्वयं की रची हुई दुनिया
जिसे वह पीछे छोड आयी है
अब भी पुकार रही है उसे
किसी चुलबुले बच्चे की तरह
बार- बार मचल कर घनघना रहा है
उसका मोबाइल फोन
क्या उसे पता होगा
कि सिरजनहार देवी की
वह स्वयं भी है
एक साक्षात् प्रतिनिधि
जीवित प्रतिरूप !
रामप्रकाश कुशवाहा
17-10-2018