पहले मै कल्पनाओं को ही
जीवन समझ कर जीता रहा
सोचता था कल्पनाओ को बचा लूँगा
तो सुरक्षित बच जाएगा जीवन
कि एक दिन देख लिया मैने
कल्पना के बादल के पीछे
सूरज की तरह छिपा हुआ
खुली हुई धूप सा वास्तविक जीवन
धूसर मटमैली खुरदुरी धरती
जीवन का हरा सागरीय विस्तार
कि जीवन बचा रहेगा
तो चलती रहेंगी कल्पनाएँ
अब मै कल्पनाओं पर नहीं
कल्पनाओ को जीते हुए जीवन पर
रीझता रहता हूँ
रामप्रकाश कुशवाहा