बना प्रकृति के भौतिक- रासायनिक नियम से सम्भव है
तो बनाया ईश्वर के होने या उपस्थिति का बोधक यानि मानवीकरण। इन्ही दोनो छोरों के बीच इस दुनिया की सारी सम्भावनाएं खत्म हो जाती है । लेकिन कभी कभी मै ऐसा सोचे बिना नहीं रह पाता कि निर्जीव प्रकृति से मनुष्य जीवन तक की यात्रा के बाद प्रकृति को एक ईश्वर बनाने के लिए विकास क्रम मे क्या करना होगा ! सम्भवतः एक ऐसी सचेतन सत्ता जिसकी सूक्ष्म मानसिक तरंगों पर प्रकृति के सूक्ष्म अणु भी नृत्य कर सकें । दूसरे शब्दों में ईश्वर उस बिन्दु पर ही स्थिति होगा, जिस बिन्दु पर जड और चेतन की सीमा रेखा समाप्त या प्रारम्भ होती है । जीवन की उस सम्भावनात्मक अमरता मे भी जो इस सृष्टि के विनाश के बाद भी गुणधर्म के आधार पर एक बार फिर इस सृष्टि के जैविक पुनर्जन्म का आश्वासन देती है । क्षमा करना स्टीफन हॉकिंग! मुझे तो इसी सम्भावना मे ही जीवन के अमरत्व के दर्शन होते हैं ।
तो बनाया ईश्वर के होने या उपस्थिति का बोधक यानि मानवीकरण। इन्ही दोनो छोरों के बीच इस दुनिया की सारी सम्भावनाएं खत्म हो जाती है । लेकिन कभी कभी मै ऐसा सोचे बिना नहीं रह पाता कि निर्जीव प्रकृति से मनुष्य जीवन तक की यात्रा के बाद प्रकृति को एक ईश्वर बनाने के लिए विकास क्रम मे क्या करना होगा ! सम्भवतः एक ऐसी सचेतन सत्ता जिसकी सूक्ष्म मानसिक तरंगों पर प्रकृति के सूक्ष्म अणु भी नृत्य कर सकें । दूसरे शब्दों में ईश्वर उस बिन्दु पर ही स्थिति होगा, जिस बिन्दु पर जड और चेतन की सीमा रेखा समाप्त या प्रारम्भ होती है । जीवन की उस सम्भावनात्मक अमरता मे भी जो इस सृष्टि के विनाश के बाद भी गुणधर्म के आधार पर एक बार फिर इस सृष्टि के जैविक पुनर्जन्म का आश्वासन देती है । क्षमा करना स्टीफन हॉकिंग! मुझे तो इसी सम्भावना मे ही जीवन के अमरत्व के दर्शन होते हैं ।
रामप्रकाश कुशवाहा