परिशासा-महाशिवरात्रि की रात्रि में जागते हुए चिंतन
मैं नहीं जानता कि वे स्वार्थ में हैं या प्रेम में
वे भय में हैं या विनम्रता में
उनका विनम्र एवं पवित्र समर्पण मुझे अभिभूत करता है
उनकी आस्था मुझे ईर्ष्यालु बनाती है
उनका विश्वास मुझे अविश्वास से भर देता है
हे प्रभु !क्या चमत्कार है कि
ये पीढ़ी दर पीढ़ी
सदियों से छले हुए लोग हैं
उनकी आस्था अटूट है
और उनकी जनसँख्या पर्याप्त
और वे सभी चुपचाप अपनी प्रजाति कि अमरता के लिए
समर्पित हैं
मैं जनता हूँ कि वे बार-बार मारे जाने के बावजूद
बचे रहेंगे
कि अस्तित्व की इतनी पुनरावृत्ति है कि
इतनी दुर्घटनाओं -आशंकाओं के बावजूद वे सुरक्षित हैं
हे प्रभु ! इतनी क्रूरता के बावजूद वे कितने आश्वस्त एवं आभारी हैं
उनकी अच्छाइया सारी बुराइयों पर भारी है।
4
धरती पर जब से बना है जीवन
तब से धरती पर दौड रहा है कुत्ता
एक जीवन के रुप में यह कुत्ता
इस वक्त के विश्व का विशुद्ध वर्तमान है
इस कुत्ते ने बचा रखा है अपने भीतर
सृष्टि की आदिम कोशिका से मिला हुआ जीव - द्रव्य
उसके स्पन्दन और धडकन
चुप-चाप गुडी- मुडी बैठने के बावजूद
वह एक जैविक मशीन की सक्रिय उपस्थिति है
धरती पर करोडों वर्षों से दौडती हुई एक अद्भूत मशीन
यह उतनी ही उम्र का नहीं है
ज़ितनी उम्र का इसे जन्म से अब तक की उपस्थिति के आधार पर देख रहा हूँ मैं
कुत्ता जानता है कि इस दुनिया को
अपने आने से पहले से जान रहा है वह
घूमती हुई धरती पर
पृथ्वी की गतिशीलता से होड़ लेता हुआ
तेजी से दौड रहा है कुत्ता
काल चक्र के समानांतर
5
आॅख- मिचौनी
( गुज़रते समय मे कवि और कविता)
मैं उनके समय में था और नहीं भी था
और भी बहुत सारे लोग थे उन्के समय मे
जो कविता नहीं कर रहे थे और
चुपचाप जी रहे थे अपनी ज़िन्दगी
वे अपने- अपने घर मे थे
घर के लोगों से घर की भाषा बोलते हुए
एक ऐसे समय मे जब कविता
सिर्फ बाजार की भाषा बोल रही थी
बाजार में कविता
सिर्फ एक आदत थी
जहाँ कुछ लोग बोलतें- बडबडाते हुए
अपने सम्वादी कलरव से भर रहे थे सुने समय को
जैसा कि हम सभी जानते हैं
हर चुप उदास थका हुआ
बोलने को अनिच्छुक आदमी
जनता कहा जाता है
और बोलने वाला कवि
कविता से बाहर का आदमीं
एक अलिखित इतिहास की तरह जीता रहता है
समय मे हुए किसी अदृश्य निवेश की तरह
कई बार बहुत बोलने वाले लोग
चुप्पी पसंद लोगो में सिर्फ चिढ़ और खीज पैञदा करते है
ऐसे लोग प्रायः हिकारत और मजाक से देखते रहते है
कवियों और उनकी कविताओ को
चुपचाप करते रहते हुए दुनिया के सारे काम
बिल्कुल मेरे पिताजी की तरह !
6
रोना कोई दृश्य नहीं
दृश्य का डूब जाना है
एक पहाड़ी झरने के पीछे
जलते हुए जीवन का
अपने सारे वस्त्र उतार कर
कूद पड़ना है
अथाह खारे समुद्र में .....
7
जब तय हो चुका था
क्रान्ति का सारा मज़मून
सिर्फ़ मेरी दस्तखत बाकी थी
और उसके बाद कर दी जानी थी क्रान्ति शुरू हो जाने की घोषणा
मै सहसा उठा और अपनी असहमति को
यत्नपूर्वक बचाए हुए
भविष्य के संकरे दरवाजे की तरफ भागा
तब से मै बाहर हूँ
बीतते- गुजरते परिदृश्य से
चुपचाप दर्शकों मे शामिल
सिर्फ़ देखते हुए गुजरते जुलूसों के दृश्य को
हर जुलूस एक नया पर्यावरण रचने के नारे के साथ
अपने पीछे कुचलती हुई घास
और ढेर सारी गन्दगी छोड़ जाता है
और अपने हिंसक आवेश की हत्यारी स्मृतियों का
कभी भी न भुलाया जा सकने वाला निर्मम इतिहास
वे मेरी आंखों मे झांकते हैं
और मेरी आंखों में
जोश की जगह होश देखकर डर जाते हैं
चीखता है एक असहिष्णु स्वर-
अपने बीच से नहीं है यह विधर्मी -
भगाओ इसे
मै भी स्वयं को वहाँ से भाग जाने के प्रति
सहमत पाता हूँ
ठगे जाने के मानव- इतिहास के
पिछले अनुभवों से डरा हुआ मै
निर्णायक जोश से बार- बार भागता हूँ
अकेले पड़ते होश की तरफ
मै जानना चाहता हूँ कि
मेरे जैसे लोग कितने हैं
क्या इतने है कि एक दिन निकाला जा सके
सिर्फ होश वालों का जुलूस ?
रामप्रकाश कुशवाहा