जब तक किसी समूह के सदस्य एक-दूसरे के अधिकतम समरूप बने रहने के प्रयास में दूसरे समूह से भिन्न बने रहेंगे भारत में जाति -प्रथा नाम-रूप बदलकर किसी न किसी रूप में बनी रहेगी | जातिविहीनता का आदर्शवाद तभी संभव है जब सभी असामाजिक हो जाएँ और समूह के आदर्शों को जीना बंद कर दें | जाति भी मनुष्य के सामाजिक प्राणी होने के कारण ही अस्तित्व में बने हुए हैं | भारत में जातिवाद किसी ब्राह्मण या ब्राह्मण समुदाय द्वारा बनाया गया नहीं है ,बल्कि उसकी ऐतिहासिक पारिस्थितकी की उपज है |उपजाऊ देश होने के कारण प्राचीन काल से ही अलग-अलग समूह भारत में बसने के लिए आते गए और जातियाँ बढ़ती गयीं | यदि दूसरे की सामूहिक भिन्नता को स्वीकार करना ही जातिवाद है तो ऐसे जातिवाद को भारत के लिए प्रगतिशील भी माना जा सकता है | हम सभी जानते हैं कि मध्यकाल में जब पुलिस व्यवस्था हमेशा ही ठीक नहीं रही होगी तो जातियों नें ही अपने सदस्यों का चारित्रिक नियमन किया होगा | जाति प्रथा भी मनोवैज्ञानिक दंड और पुरष्कार-प्रथा के आधार पर ही हजारों वर्षों तक ऐसा करती रहीं | जाति प्रथा की यह प्रगतिशील भूमिका थी | सबको समान रूप में जीने के लिए दबाव बनाना भी हिंसा है | जाति -प्रथा नें अलग-अलग समूहों को अलग -अलग रीति-रिवाजों को जीने की स्वायत्तता दी | भारत में जातिप्रथा इसलिए बुरी है कि धार्मिक आधार पर श्रेणीकरण करने के कारण कुछ लोगों को निचले दर्जे पर कर दिया गया | ऐसा महावीर स्वामी और बुद्ध धर्म में प्रचलित अहिंसावाद से हुआ होगा | इससे चर्म-उद्योग से जुडी जातियां अधिक घाटे में रहीं और अछूत तक करार दी गयीं | आज वैश्विक अनुरूपता की धारा बह रही है | नस्लीय या अनुवांशिक भिन्नता को छोड़ दे तो समान शिक्षा-दीक्षा और रहन-सहन के कारण आज समूह की भिन्नता भी कम हो रही है | आज जाति-प्रथा किसी बौद्धिक या वैचारिक आधार पर नहीं बल्कि वैवाहिक सुविधा , आलस्य और सामाजिक तंत्र के आधार पर बची हुई है | इसकी शक्ति भी सामाजिकता की ही शक्ति है | क्योकि कुछ जातियों का राजनीतिकरण हो चुका है इसलिए उनका संगठनात्मक हित जाति प्रथा को बनाए रखने में हो गया है | इस कारण ही जाति से बाहर निकलने के वैयक्तिक प्रयास प्रभावी नहीं हो रहे हैं |
जीवन का रास्ता चिन्तन का है । चिन्तन जीवन की आग है तो विचार उसका प्रकाश । चिन्तन का प्रमुख सूत्र ही यह है कि या तो सभी मूर्ख हैं या धूर्त या फिर गलत । नवीन के सृजन और ज्ञान के पुन:परीक्षण के लिए यही दृष्टि आवश्यक है और जीवन का गोपनीय रहस्य । The Way of life is the way of thinking.Thinking is the fire of life And thought is the light of the life. All are fool or cheater or all are wrong.To create new and For rechecking of knowledge...It is the view of thinking and secret of life.
गुरुवार, 20 अप्रैल 2017
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