गुरुवार, 12 मार्च 2015

भारतीय ईश्वर से

मैं जब शून्य को जिऊंगा
तुम मेरी इच्छाएँ किसी और को दे दोगे
क्या तुम जानते हो
तुम्हारे बनाए संसार की तरह
इच्छाओं का भी अलग संसार होता है .....

जिसने भी बनायीं होगी चिड़िया और उसका सुरीला कंठ
तुमने या जीवन का उत्पादन करने में समर्थ प्रकृति के आतंरिक गुण -धर्मं नें
क्या तुम जानते हो कि मेरा अपनी इच्छाओं को वापस ले लेना
किसी गायक चिड़िया का अपना गीत सुनाने से इंकार कर देना है ?

मेरी इच्छाएँ जो मेरे सृजन की स्वतंत्रता हैं
मेरे विवेक की स्वतंत्रता हैं
भले ही अपने विवेक के लिए अपने स्वभाव से परतंत्र हूँ मैं
या फिर मजबूर और उत्तेजित कर देने वाली परिस्थितियों के कारण
मैं स्वाधीन क्रियाओं का नहीं बल्कि पराधीनता जन्य
प्रतिक्रियाओं का ही जीवन जीने लगूं
दूसरों की अपराधी इच्छाओं के उद्वेलन से
मैं भूल जाऊं की मैं वास्तव में चाहता क्या था
और मुझे क्या करना पड़ा ?


तुम चाहते हो की मैं अपना होना तुम्हारे लिए छोड़ दूं
तुम चाहते हो कि मैं अपना स्वाभिमान न जिऊं !
तुम चाहते हो कि मैं इतना विनम्र हो जाऊं कि तुम्हारे लोग
किसी घास या कीट की तरह रोंदते हुए मेरे ऊपर से गुजर सकें ....
तुम चाहते हो की मैं अपनी इच्छाओं को निरस्त कर दूँ
या फिर भूल जाऊं तुम्हारे लिए
अपने चित्त के प्रशिक्षित आत्मनियंत्रण के बावजूद
मैं जानता हूँ कि तुम इच्छाओं की अराजकता रोक नहीं पाओगे
किएक अच्छे आदमी की इच्छाओं और संवेदनाओं को स्थगित करा देना
एक धार्मिक हिंसा और अपराध ही है ....


जबकि पाशविक ,अशिक्षित ,संस्कारित यांत्रिकता
घटिया इच्छाओं का लगातार उत्पादन कर
इस दुनिया को और बुरी बनाती जाएगी
मेरी इच्छाएँ जो अच्छी हैं
क्योंकि मैं सभी के साथ ..सभी के लिए जीने का सपना देखता हूँ
मैं ईमानदारी से इस बहुसंख्यक दुनिया में किसी तानाशाह का
अकेले ईश्वर की तरह जीना पसंद नहीं करता
मैं एक सामाजिक विनम्र और जिम्मेदार ईश्वर चाहता हूँ
ईश्वर जो मानव -जाति पर शासन करता हुआ नहीं
बल्कि मनुष्यता को भीतर से जीता हुआ हो .....