१ आर्थिक भाषाहीनता-
यदि हमें साम्यवादी व्यवस्था को आदर्श रूप में घटित या मूर्त देखना होगा तो सबसे पहले बाजार से बाहर आना होगा। पूंजी के सामूहिक स्वामित्व की अवधारणा लिए हुए यह परिवारवाद में वापसी जैसा ही होगा -क्योंकि सिर्फ परिवार में ही पूंजी के मुद्रा रूप का परिचालन रोका जा सकता है। बाजार की आवश्यकता को स्थगित या शून्य किया जा सकता है। पूंजी के अनियंत्रित व्यवहार तथा भावी विषमता और शोषण की समाप्ति के लिए साम्यवाद की मनोवैज्ञानिक आवश्यकता है कि वह पूंजी और मुद्रा के परिचालन और व्यव्हार की निगरानी रखे और उसे नयी विषमता की दिशा में न बढ़ने देने के लिए। एक सीमा तक अवरुद्ध रखे।
अपनी इसी मुद्रा विरोधी निरुद्धात्मक आवश्यकता के कारण एक आदर्श साम्यवादी व्यवस्था एक नयी समस्या को जन्म देगी जो मुद्रा के संसूचक भूमिका के निरस्त किए जाने से सम्बंधित होगी। इस तरह एक आदर्श साम्यवादी अवस्था आर्थिक मूल्यपरक संवादहीनता की स्थिति को भी जन्म देगी। क्योंकि मुद्रा पूंजी व्यवहार की एक प्रतीकात्मक भाषा -व्यवस्था ही है। इस भाषा हीनता की प्रति पूर्ति के लिए एक समानतर सूचना -तंत्र निर्मित करना होगा। मुख्य समस्या होगी मानवीय आवश्यकता के अनुसार वस्तुओं की उपलब्धता और आपूर्ति की। यह नियमन कि कोई क्या मांगे ,इसकी पात्रता एवं अर्हता का मुद्रा अधर भी समाप्त होने पर अलग कानून बनाकर या प्रशासनिक आदेश जारी कर नियमन करना होगा।
इस तरह किसी भी साम्यवादी व्यवस्था की प्रमुख चुनौती यह भी होगी कि वह अपनी व्यवस्था के भीतर पूंजी के स्वतन्त्र निर्बाध विनिमय के प्रमुख स्थल बाजार को ,जिसे निश्चय ही पूंजीवादी नें पैदा और अपनी आवश्यकता के अनुरूप विकसित किया है ,उसे अपने भीतर देगा नहीं ?
२. पूंजीवादी पर्यावरण की उपज महानगरों(महाबजारों )जैसी बड़ी संरचनाओं का साम्यवाद की परिकल्पना के अनुसार पुनर्विन्यास हेतु विसर्जन ताकि आर्थिक समानता का अधिक से अधिक पर्यावरण निर्मित किया जा सके। पूंजीवादी व्यवस्था में उपलब्ध विविध उत्पादों में जो गुणात्मक विविधता है वे एक जटिल विषमता बोध का निर्माण करते हैं ,इसलिए समानता की अवधारण से उनपर पुनर्विचार करना होगा।
यदि हमें साम्यवादी व्यवस्था को आदर्श रूप में घटित या मूर्त देखना होगा तो सबसे पहले बाजार से बाहर आना होगा। पूंजी के सामूहिक स्वामित्व की अवधारणा लिए हुए यह परिवारवाद में वापसी जैसा ही होगा -क्योंकि सिर्फ परिवार में ही पूंजी के मुद्रा रूप का परिचालन रोका जा सकता है। बाजार की आवश्यकता को स्थगित या शून्य किया जा सकता है। पूंजी के अनियंत्रित व्यवहार तथा भावी विषमता और शोषण की समाप्ति के लिए साम्यवाद की मनोवैज्ञानिक आवश्यकता है कि वह पूंजी और मुद्रा के परिचालन और व्यव्हार की निगरानी रखे और उसे नयी विषमता की दिशा में न बढ़ने देने के लिए। एक सीमा तक अवरुद्ध रखे।
अपनी इसी मुद्रा विरोधी निरुद्धात्मक आवश्यकता के कारण एक आदर्श साम्यवादी व्यवस्था एक नयी समस्या को जन्म देगी जो मुद्रा के संसूचक भूमिका के निरस्त किए जाने से सम्बंधित होगी। इस तरह एक आदर्श साम्यवादी अवस्था आर्थिक मूल्यपरक संवादहीनता की स्थिति को भी जन्म देगी। क्योंकि मुद्रा पूंजी व्यवहार की एक प्रतीकात्मक भाषा -व्यवस्था ही है। इस भाषा हीनता की प्रति पूर्ति के लिए एक समानतर सूचना -तंत्र निर्मित करना होगा। मुख्य समस्या होगी मानवीय आवश्यकता के अनुसार वस्तुओं की उपलब्धता और आपूर्ति की। यह नियमन कि कोई क्या मांगे ,इसकी पात्रता एवं अर्हता का मुद्रा अधर भी समाप्त होने पर अलग कानून बनाकर या प्रशासनिक आदेश जारी कर नियमन करना होगा।
इस तरह किसी भी साम्यवादी व्यवस्था की प्रमुख चुनौती यह भी होगी कि वह अपनी व्यवस्था के भीतर पूंजी के स्वतन्त्र निर्बाध विनिमय के प्रमुख स्थल बाजार को ,जिसे निश्चय ही पूंजीवादी नें पैदा और अपनी आवश्यकता के अनुरूप विकसित किया है ,उसे अपने भीतर देगा नहीं ?
२. पूंजीवादी पर्यावरण की उपज महानगरों(महाबजारों )जैसी बड़ी संरचनाओं का साम्यवाद की परिकल्पना के अनुसार पुनर्विन्यास हेतु विसर्जन ताकि आर्थिक समानता का अधिक से अधिक पर्यावरण निर्मित किया जा सके। पूंजीवादी व्यवस्था में उपलब्ध विविध उत्पादों में जो गुणात्मक विविधता है वे एक जटिल विषमता बोध का निर्माण करते हैं ,इसलिए समानता की अवधारण से उनपर पुनर्विचार करना होगा।