आगे कोई भी घाट
शेष नहीं है
सिर्फ बहती हुई गंगा का अंतहीन प्रवाह है
समय की तरह
अब मुझे भी वापस लौट चलना चाहिए
प्राकृत गंगा से जनगंगा की और
यानि जीवन के शुद्ध वर्तमान में ...
शेष नहीं है
सिर्फ बहती हुई गंगा का अंतहीन प्रवाह है
समय की तरह
अब मुझे भी वापस लौट चलना चाहिए
प्राकृत गंगा से जनगंगा की और
यानि जीवन के शुद्ध वर्तमान में ...