हाँ मुझे करनी है विवेक की साधना
मुझे जीना सीखना होगा ईश्वर एवं पिता के बिना
जैसा कि मुझे बताया गया था
कि परमपिता ईश्वर सबकी इच्छाओं और सबके स्वार्थों का प्रतिनिधि है
इस पतनशील सामूहिकता के समय में
उसकी जिम्मेदार सत्ता के प्रतिनिधि के रूप में
मुझे उससे असहमति के लिए भी तैयार रहना होगा
और एक लम्बे निर्वासन और उपेक्षा के लिए भी
सम्भव है मनुष्य को अपना बंधुआ बनाये रखने वाली
मनुष्यविरोधी सत्ताधारी शक्तियां मुझे पसंद न करें
शक्त्तियां जो सामूहिक मूर्खता को
सामूहिक समझदारी के रूप में विज्ञापित करती रहती हैं
जिन्होंने एक बड़ी भीड़ को
अपने बुने भ्रमजालों में फंसा लिया है
और किसी अनुचित जातीय एकता की तरह अश्लील
आश्वस्त और निर्लज्ज हो गयी हैं
फिलहाल तो अब तक का भय,दुःख और मृत्यु कारक ईश्वर
एक भगदड़ की तरह है
जो रौंदते समय में नहीं सोच पाता कि
कौन कुचला जा रहा है और क्यों ?
फिलहाल तो ईश्वर एक निर्णायक त्रासदी है
जिसपर किसी भी टिप्पणी का कोई अर्थ नहीं है।