कल" समकालीन सोच" से जुड़े मेरे एक मार्क्सवादी कवि मित्र जे ०के ० सिंह (पूरा नाम जितेन्द्र कुमार सिंह जो समाजशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं ) अरविन्द केजरीवाल के वर्ग को लेकर परेशान थे। वे इसे एक सुधारवादी आंदोलन मानकर असली क्रांति को भटकाने वाला यानि दूर करने वाला आंदोलन मान रहे थे। उनकी दृष्टि में यह इतिहास की एक साजिश है। वे इस बात के लिए भी दुखी थे कि इस साजिश के कारण अब क्रांति उनके जीवन-काल में नहीं हो पाएगी। इस आंदोलन नें एक बार फिर वास्तविक क्रांति की आतंरिक ऊर्जा को जनमन से दूर कर दिया है। उन्होंने अपने सोचने पर मेरी व्यक्तिगत राय चाही। मैंने उन्हें बताया कि यह आपके समझने यानि अण्डर-स्टैंडिंग की व्यक्तिगत समस्या है। मैं यह भी उन्हें कहने के लिए सोचता रहा कि आपमें एक विचारधारात्मक अक्षमता विकसित हो गयी है ,जिसके कारण मार्क्सवाद के अतिरिक्त कुछ सोच ही नहीं पाते। मैंने उन्हें सुझाव दिया कि आप इस समस्या को कुछ इस तरह से सोचें -कि आपने (विचारधारा के रूप में ) मार्क्सवाद की एक नहर बनायीं थी और सोचा था कि इतिहास का पानी सिर्फ इसी नहर से निकले लेकिन इतिहास के जीवंत प्रवाह नें पहले ही बंधे को तोड़ दिया और नाले के रूप में बह निकला। अब यह नाला ही सही पानी तो इसी नाले से हीबह रहा है। इस बहाने को मानसिक रूप से स्वीकार करने में आपको वक्त लगेगा।
फिलहाल उनकी चिंता यह थी कि वे केजरीवाल की विचारधारा को किस परंपरा से जोड़ें !स्वाभाविक है कि टोपी के आधार पर वे इसे गांधी की परंपरा और कांग्रेस से जोड़ते तो कुमार विश्वास के मोदी प्रेम के आधार पर भाजपा से। उन्होंने अंतिम निष्कर्ष यह निकाला कि वास्तव में यह अभी तक तो गांधी की परम्परा वाली कांग्रेस से ही जुड़ती है ,आगे भविष्य ही जाने। इसमें बहुत से मोटा वेतन पाने वाले लोग भी शामिल हैं ,इस आधार पर इसे पूंजीवाद का हरावल दस्ता भी माना जा सकता है-एक अन्य मित्र नें सुझाया । मैंने चुटकी ली कि जनमहकवि घाघ नें जो सूत्र दिया है वह तो "निषिद्ध चाकरी भीख निदान" वाला है- इस आधार पर तो सारे नौकरशाह भिखारी ही माने जाने चाहिए और इसी आधार पर सर्वहारा भी । वैसे भी उनका जीवन स्तर इतना खर्चीला तो होता ही है कि नौकरी छूटते ही भीख मांगने लगें। दूसरे कितना भी अधिक वेतन पाने वाला हो ,नौकरशाह होता है हिस्सा मध्यवर्ग का ही।
बहस में यह भी बात सामने आई कि इस आंदोलन में बहुत से घटिया लोग भी महिमामंडित हो गए हैं। अगर केजरीवाल जन भावना के निमित्त के रूप में अपनी ऐतिहासिक भूमिका को नहीं पहचान पाए तो अन्य पार्टियों के नेताओं की तरह कुछ निकटवर्ती अवसरवादियों से घिर जाएंगे और उनका भी वाही हश्र होगा जो आज कांग्रेस और भाजपा का है। आप एक इतिहास की एक स्वाभाविक उपस्थिति तभी बन पाएगा जब केजरीवाल भी आप को बहते पानी की तरह योग्य बुद्धिजीवियों के लिए एक ईमानदार तटस्थ मंच के रूप में विकसित कर पाएंगे। कांग्रेस की स्थापना ह्यूम नें कि थी लेकिन उसकी ऐतिहासिक भूमिका ह्यूम की प्रत्याशा से काफी दूर निकला गयी। नदियों कि तरह आंदोलन भी इतिहास की अपनी जरुरत के अनुसार आतंरिक वेग से संचालित होते हैं। बहुत से लोग (अण्णा हजारे की तरह ) अपनी भूमिका निभाकर अप्रासंगिक होकर पीछे छूट सकते हैं ,लेकिन आप को एक वैकल्पिक मंच के रूप में योग्य राजनीतिज्ञों की तलाश जारी रखनी चाहिए। हो सकता है कि आप की कोई पिछली शानदार परंपरा नहीं हो। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वह जीवित इतिहास में उपस्थित वर्तमान का एक हिस्सा है वह अतीत के अनुभवों से कम संचालित होकर भी यदि वर्त्तमान के अनुभवों और आवश्यकताओं से संचालित होता है तो -यह भी एक ऐतिहासिक भूमिका बनती है।
फिलहाल उनकी चिंता यह थी कि वे केजरीवाल की विचारधारा को किस परंपरा से जोड़ें !स्वाभाविक है कि टोपी के आधार पर वे इसे गांधी की परंपरा और कांग्रेस से जोड़ते तो कुमार विश्वास के मोदी प्रेम के आधार पर भाजपा से। उन्होंने अंतिम निष्कर्ष यह निकाला कि वास्तव में यह अभी तक तो गांधी की परम्परा वाली कांग्रेस से ही जुड़ती है ,आगे भविष्य ही जाने। इसमें बहुत से मोटा वेतन पाने वाले लोग भी शामिल हैं ,इस आधार पर इसे पूंजीवाद का हरावल दस्ता भी माना जा सकता है-एक अन्य मित्र नें सुझाया । मैंने चुटकी ली कि जनमहकवि घाघ नें जो सूत्र दिया है वह तो "निषिद्ध चाकरी भीख निदान" वाला है- इस आधार पर तो सारे नौकरशाह भिखारी ही माने जाने चाहिए और इसी आधार पर सर्वहारा भी । वैसे भी उनका जीवन स्तर इतना खर्चीला तो होता ही है कि नौकरी छूटते ही भीख मांगने लगें। दूसरे कितना भी अधिक वेतन पाने वाला हो ,नौकरशाह होता है हिस्सा मध्यवर्ग का ही।
बहस में यह भी बात सामने आई कि इस आंदोलन में बहुत से घटिया लोग भी महिमामंडित हो गए हैं। अगर केजरीवाल जन भावना के निमित्त के रूप में अपनी ऐतिहासिक भूमिका को नहीं पहचान पाए तो अन्य पार्टियों के नेताओं की तरह कुछ निकटवर्ती अवसरवादियों से घिर जाएंगे और उनका भी वाही हश्र होगा जो आज कांग्रेस और भाजपा का है। आप एक इतिहास की एक स्वाभाविक उपस्थिति तभी बन पाएगा जब केजरीवाल भी आप को बहते पानी की तरह योग्य बुद्धिजीवियों के लिए एक ईमानदार तटस्थ मंच के रूप में विकसित कर पाएंगे। कांग्रेस की स्थापना ह्यूम नें कि थी लेकिन उसकी ऐतिहासिक भूमिका ह्यूम की प्रत्याशा से काफी दूर निकला गयी। नदियों कि तरह आंदोलन भी इतिहास की अपनी जरुरत के अनुसार आतंरिक वेग से संचालित होते हैं। बहुत से लोग (अण्णा हजारे की तरह ) अपनी भूमिका निभाकर अप्रासंगिक होकर पीछे छूट सकते हैं ,लेकिन आप को एक वैकल्पिक मंच के रूप में योग्य राजनीतिज्ञों की तलाश जारी रखनी चाहिए। हो सकता है कि आप की कोई पिछली शानदार परंपरा नहीं हो। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वह जीवित इतिहास में उपस्थित वर्तमान का एक हिस्सा है वह अतीत के अनुभवों से कम संचालित होकर भी यदि वर्त्तमान के अनुभवों और आवश्यकताओं से संचालित होता है तो -यह भी एक ऐतिहासिक भूमिका बनती है।