रामप्रकाश कुशवाहा की कविताएँ
पत्नी के सम्मान में
( राग - बंध -अंध )
पत्नी के सम्मान में
वापस लौट आये दुनिया के सारे अन्धविश्वास
वे भी जिन्हें कभी मैंने नापसन्द किया था
जिनसे मै असहमत हुआ और जिन्हें अपने विवाहपूर्व काल में
निर्णायक और घोषित रूप में कभी ख़ारिज भी !
निर्णायक और घोषित रूप में कभी ख़ारिज भी !
पत्नी को मेरी सारी निरीह्ताओं का पता है
जैसे कि मै अपना ईश्वर बदल सकता हूँ लेकिन बोंस नहीं
कि मध्यवर्ग का हर पुरुष अपनी दृश्य -अदृश्य मूँछ के साथ
यथा -अवसर हिलाने के लिए एक अह्लाद्वर्धक पूँछ भी रखता है
बेंत के विकल्प में सहलाना-क्रिया जैसे !
उन्हें चाहिए सुरक्षा का जोखिम-मुक्त आश्वासन
जो मेरे हाथ में बिलकुल ही नहीं है
क्या मै सुबह का घर से निकला शाम को सही-सलामत
परिवार में वापस आ सकता हूँ !
क्या दूसरो के झूठ और शरारतों को पकड़ने वाला
एंटीवायरस साफ्टवेयर है मेरे पास
क्या मुझमे बजट की बारीकियों और मंहगाई के आपसी रिश्तों की
एंटीवायरस साफ्टवेयर है मेरे पास
क्या मुझमे बजट की बारीकियों और मंहगाई के आपसी रिश्तों की
थोड़ी भी समझ है !
और एक समझदार पूर्वानुमान के साथ बचत की सतर्कता भी
पत्नी ही हैं जो इस दुनिया में सिर्फ एकमात्र मुझे ही सुधार सकती हैं
और सबसे अधिक दुनिया की सुधार वाले मेरे असमभव सपनों से ही
डरती है
उन्हें मेरी निरपेक्ष और अकेली बहादुरी से डर लगता है
सुनो जी ! तुम सारे बूद्धि-जीवी ही कटे -कटे रहते हो
बिना जुड़े और जोड़े न डकैत बना जा सकता है न नेता
जेबकतरे भी सामूहिक अभिनय से लोगो को लूट लेते हैं
अकेली समझदारी तो मूर्खों के गैंग द्वारा भी रौंद कर मारी जा सकती है
मुझे कोई भ्रम नहीं है
मै जानता हूँ इस दुनिया में जीवित लोगों की तुलना में
मरे हुओ से सहमत होना अधिक आसान होता है
असहमति अकेला बनाती है और असामाजिक भी
मेरी पत्नी जो सामाजिक धोखा-धड़ी अपराध और दुर्घटना की शिकार
एक डरे हुए परिवार से है
मुझे पूरी सावधानी और समझदारी के साथ उन्ही को जीना है
उनके अविश्वासो और आशंकाओं के साथ अनुत्तरित
घूस और पैरवी दोनो ही न देने -करने के स्वाभिमानी पागलपन में
योग्य होते हुए भी मैंने और इस समाज ने मिलकर उन्हें रखा है बेरोजगार
इसे तिकड़म की अभियांत्रिकी की अयोग्यता कहें या ईश्वर की इच्छा !
यह जरुरी तो नहीं कि मै जिस तरह सोच और समझ रहा हूँ
उसी तरह सोचें और समझें आप
अभी जो भक्तिसंगीत का रिंगटोन बज रहा है
उसे बिना किसी अन्यथा और टिप्पणी के फ़िलहाल धैर्यपूर्वक सुने !
इसे तिकड़म की अभियांत्रिकी की अयोग्यता कहें या ईश्वर की इच्छा !
यह जरुरी तो नहीं कि मै जिस तरह सोच और समझ रहा हूँ
उसी तरह सोचें और समझें आप
अभी जो भक्तिसंगीत का रिंगटोन बज रहा है
उसे बिना किसी अन्यथा और टिप्पणी के फ़िलहाल धैर्यपूर्वक सुने !
वैसे भी मै अभी नौकरी कर रहा हूँ समझे आप !
कोई भी पार्टी न बनाने के संवैधानिक अनुबंध के साथ
प्रेम के बादशाह शाहजहाँ के लिए
उसकी प्रेम की सत्ता है या एक सत्ताधारी का प्रेम
प्रदर्शन संकोच और अभिजात्य की पूरी गरिमा से ढंका हुआ
सुरक्षा और प्रतीक्षा की चाहरदीवारी में बंद मनों की
दिन -दिन तड़पती मुक्ति-उडान
सत्ता की वर्जनाओं ने उन्हें एक अभिशाप की तरह छिपाकर रखा है
उसका प्रेम और उसके परिवार की स्त्रियाँ
उसका प्रेम और उसके परिवार की स्त्रियाँ
सभी एक प्रतिष्ठित समूह की सुंदरियाँ थीं
कम सुन्दर होते हुए भी कुलीनता की गरिमा से युक्त और असाधारण
विशिष्टता का अभिशाप लिए
जहाँआरा कुँवारियाँ जिन्हें सत्ता की मर्यादा की रक्षा के लिए
अदृश्य यानि पर्दानशीं कर रखा गया था
प्रेम का बादशाह अपनी बेगम के साथ अब भी सोया है शान से
पूरी अदब और सुरक्षा के साथ
वह समयातीत और सत्ता से बेदखल होने के बावजूद
एक जीवंत और शानदार उपस्थिति है
औरन्गजेब की कैद के बावजूद उसकी आत्मा मुक्त रही लोकोत्तर प्रेम के लिए
वह उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सका
प्रेम का बादशाह आज भी भर रहा है आगरे की जनता का पेट
उसने अपनी सत्ता को कितना सुन्दर बना दिया था
तबले की संगत पर
आज भी उसके लिए मुँह से निकलता है-आह ताज!वाह ताज !
बादशाह-दो
(बादशाह अकबर के लिए)
सब विश्वास में हैं
और बादशाह भी
विश्वास करने के बादशाह को
विश्वास करने वाली प्रजा ही चाहिए
विश्वास करने वाली प्रजा ही चाहिए
हर तलवार चलाने वाला बादशाह चाहता है कि
उसके तलवार चलाने के दिनों को भुला दिया जाय
बादशाह-तीन
(बाबर के लिए )
उनके लिए जीतना बहुत ही जरुरी था
वे आपने घर से उजड़े हुए लोग थे
उन्हें कहीं बसने के लिए
जीतना बहुत ही जरुरी था
क्योंकि वे लड रहे थे
आपनी मुक्ति और पुनर्जीवन के लिए
थोड़ी सी जगह जरुरी है
किसी और के लिए
चाहे वह ईश्वर हो या फिर कोंई और
थोडा सा भोजन उसके लिए
जो अभी नहीं आया है
लेकिन जो आ सकता है कभी भी
थोडा सा धैर्य -जो दुःख में हैं
उनकी नाराजगी और क्रोध के लिए
थोडा सा बोझ दूसरो की विपत्ति को
बाँट लेने और बचा लेने के लिए
थोड़ी सी सम्भावनाये बची रहनी चाहिए
नए आविष्कारो के लिए भी
और थोड़ी सी ऊब नए प्रश्नो के लिए
थोडा सा मन नैराश्य के अंतिम क्षणों के विरुद्ध
थोड़ी सी चुप्पी और थोडा सा संवाद
एक संवेदनशील मन और सुरक्षित जीवन के लिए---
घर से बाहर निकलते ही
चीजें बदल जाया करतीं हैं
यात्रा के पाथेय के लिए
पत्नी द्वारा प्रेम से पकाए गए पुए
बदल जाते हैं अश्लील दृश्य में
पकवानों की सुगंध भूख का शोर मचा देती है
पहाड़ की लम्बी यात्रा के बाद
सोंदर्य के स्वर्ग से भूख की धरती पर उतरे थे हम
घर के साथ यात्रा करते हुए प्लेटफार्म के मंच पर
सपरिवार अवतरित ही हुए थे कि
टिफिन के खुलने ने बन्दर,कुत्ते ,एक भिखारी और सांड को
एक साथ ही अयाचित आमंत्रण दे दिया
हमने स्वयं को एक हिंसक उपस्थिति के साथ
भोजन करते पाया भीड़ भरे प्लेटफोर्म पर
भोजन ने हलचल ही नहीं भगदड़ सी ही मचा दी थी प्लेटफोर्म पर
यह एक संवेदनात्मक आक्रमण जैसा अनुभव था
जैसे आक्रमणकारी टूट पड़े हों निरीह शिकार पर
पत्नी थी स्तब्ध और ठगे से ठिठक कर रह गए थे उनके हाथ
किसी अपमानित अपराधिनी-सी कोस रही थीं जैसे
अपने-आप को
आधुनिक साहसिकता को अतिक्रमण करती
संभवतः उन्हें याद आ रहीं थीं
पुरखों से मिली सीख और वर्जनाएं
कि सार्वजानिक स्थल पर भोजन करना भी एक दृश्य-अपराध है
पहाड़ की कितनी लम्बी और थका देने वाली भूखी-यात्रा के बाद
दीर्घ प्रतीक्षित भूख के अंत का उत्सव मनाना चाहते थे हम
पत्नी दुखी थीं कि इन अयाचित अतिथियों के लिए
कितनी कम पूड़ियाँ तल कर लाई थीं वे
खिन्न मन और क्षोभ के साथ उस दिन
हम सभी ने सामूहिक उपवास करना ही उचित समझा
स्वयं भूखी और संवेदन-शून्य हो चुकी
एक लगभग अदृश्य और अनुपस्थित हो चुकी ममेतर व्यवस्था के नाम!
सारा सुख आदमी के ऊपर ही टिका हुआ है
हर सुखी आदमी किसी दुखते कंधे वाले
आदमी के सर पर चढ़ा हुआ है
कोई जानबूझकर तो कोई अनजाने ही
किसी के पैरो तले पड़ा हुआ है
जेब काटने से लेकर जीने तक आदमी के लिए
आदमी ही है कच्चा माल
मानसिक विकलांगो और पराश्रितों की एक बड़ी भीड़
जो कुछ भी नया रचना और स्वयं कमाना नहीं जानती
उनकी दुनिया का एकमात्र सच यही है कि
आदमी से छीन कर ही आदमी का भाग्योदय और भला हुआ है !
बाजार में एक ही शिखर था
बिल्कुल एवरेस्ट की तरह
घटता-बढ़ता रहता था लेकिन
झुककर किसी ऊंट की तरह कर्इ बार
किसी अदने से व्यकित को भी बिठा लेता था अपनी पीठपर
फिर उसे बहुत दूर से दिखता और दिखाता था किसी शाहंशाह की तरह
एक ही एवरेस्ट की पीठ पर सब चढ़ना चाहते थे एक दिन
कूबड़ ही एवरेस्ट का था समय का पैमाना बना हुआ
दूल्हे और बारात के आने की प्रतीक्षा और पूर्वाभ्यास में
कुछ लोग बैठकर ऊंघ रहे थे एवरेस्ट की पीठ पर
समय के सूनेपन को भरते हुए
शून्यकाल के नायक!
फेरीवाला लाल किले की दीवार पर खड़ा होकर
वहीं से झांक रहा था
जहां से सिर्फ पन्द्रह अगस्त को
राष्ट्र के नाम अपना आधिकारिक सम्बोधन करते हैं प्रधानमंत्री
बाजार में
यह एक मेले का एवरेस्ट था
जहां कुछ शराबी
अपने-अपने सिर पर अपने जीवन का बोझ उठाए
थकी हुर्इ यात्री भीड़ की पीठ पर
इतिहास की दिशा का पोस्टर चिपका रहे थे ।
बाजार में होना था
और अपनी तरह
अपनी ही शर्तो पर होना था
साथ-साथ.....
मुर्दो के लिए कफन और ताबूत बेचने वाला भी
बाजार के एक छोर पर बैठा मुस्करा रहा था
पहाड़ के पत्थर और नदी के रेत बेचने वाला भी वहां बैठा मुस्करा रहा था
अपनी यादगार बिक्री और शानदार आमदनी पर
उड़ती हुर्इ रेत को बच-बचाकर चल रहे थे राहगीर
जिन्हें नहीं खरीदनी थी रेत
रेत को उड़ते हुए झेल रहे थे
झुझला रहे थे रेत पर....
रेत से अन्धी हुर्इ हवा चल रही थी कर्इ देखने वालो के विपक्ष में
रेत तो उड़ती ही है
एक बूढ़े राजगीर नें कहा-
बाजार में रेत का होना भी जरूरी है
रेत से गर्वान्वित या अपमानित होने जैसा कुछ भी नहीं है.....
संपर्क-
बी-1,श्री साईं अपार्टमेंट ,टडिया ,
करौंदी ,सुन्दरपुर,वाराणसी ,उ 0प्र 0 पिन -221005
मो 0-09451342730
अग्र-शेष
थोड़ी सी जगह जरुरी है
किसी और के लिए
चाहे वह ईश्वर हो या फिर कोंई और
थोडा सा भोजन उसके लिए
जो अभी नहीं आया है
लेकिन जो आ सकता है कभी भी
थोडा सा धैर्य -जो दुःख में हैं
उनकी नाराजगी और क्रोध के लिए
थोडा सा बोझ दूसरो की विपत्ति को
बाँट लेने और बचा लेने के लिए
थोड़ी सी सम्भावनाये बची रहनी चाहिए
नए आविष्कारो के लिए भी
और थोड़ी सी ऊब नए प्रश्नो के लिए
थोडा सा मन नैराश्य के अंतिम क्षणों के विरुद्ध
थोड़ी सी चुप्पी और थोडा सा संवाद
एक संवेदनशील मन और सुरक्षित जीवन के लिए---
दृश्य-अपराध
घर से बाहर निकलते ही
चीजें बदल जाया करतीं हैं
यात्रा के पाथेय के लिए
पत्नी द्वारा प्रेम से पकाए गए पुए
बदल जाते हैं अश्लील दृश्य में
पकवानों की सुगंध भूख का शोर मचा देती है
पहाड़ की लम्बी यात्रा के बाद
सोंदर्य के स्वर्ग से भूख की धरती पर उतरे थे हम
घर के साथ यात्रा करते हुए प्लेटफार्म के मंच पर
सपरिवार अवतरित ही हुए थे कि
टिफिन के खुलने ने बन्दर,कुत्ते ,एक भिखारी और सांड को
एक साथ ही अयाचित आमंत्रण दे दिया
हमने स्वयं को एक हिंसक उपस्थिति के साथ
भोजन करते पाया भीड़ भरे प्लेटफोर्म पर
भोजन ने हलचल ही नहीं भगदड़ सी ही मचा दी थी प्लेटफोर्म पर
यह एक संवेदनात्मक आक्रमण जैसा अनुभव था
जैसे आक्रमणकारी टूट पड़े हों निरीह शिकार पर
पत्नी थी स्तब्ध और ठगे से ठिठक कर रह गए थे उनके हाथ
किसी अपमानित अपराधिनी-सी कोस रही थीं जैसे
अपने-आप को
आधुनिक साहसिकता को अतिक्रमण करती
संभवतः उन्हें याद आ रहीं थीं
पुरखों से मिली सीख और वर्जनाएं
कि सार्वजानिक स्थल पर भोजन करना भी एक दृश्य-अपराध है
पहाड़ की कितनी लम्बी और थका देने वाली भूखी-यात्रा के बाद
दीर्घ प्रतीक्षित भूख के अंत का उत्सव मनाना चाहते थे हम
पत्नी दुखी थीं कि इन अयाचित अतिथियों के लिए
कितनी कम पूड़ियाँ तल कर लाई थीं वे
खिन्न मन और क्षोभ के साथ उस दिन
हम सभी ने सामूहिक उपवास करना ही उचित समझा
स्वयं भूखी और संवेदन-शून्य हो चुकी
एक लगभग अदृश्य और अनुपस्थित हो चुकी ममेतर व्यवस्था के नाम!
सुख का आधार
सारा सुख आदमी के ऊपर ही टिका हुआ है
हर सुखी आदमी किसी दुखते कंधे वाले
आदमी के सर पर चढ़ा हुआ है
कोई जानबूझकर तो कोई अनजाने ही
किसी के पैरो तले पड़ा हुआ है
जेब काटने से लेकर जीने तक आदमी के लिए
आदमी ही है कच्चा माल
मानसिक विकलांगो और पराश्रितों की एक बड़ी भीड़
जो कुछ भी नया रचना और स्वयं कमाना नहीं जानती
उनकी दुनिया का एकमात्र सच यही है कि
आदमी से छीन कर ही आदमी का भाग्योदय और भला हुआ है !
शून्यकाल के नायक
बाजार में एक ही शिखर था
बिल्कुल एवरेस्ट की तरह
घटता-बढ़ता रहता था लेकिन
झुककर किसी ऊंट की तरह कर्इ बार
किसी अदने से व्यकित को भी बिठा लेता था अपनी पीठपर
फिर उसे बहुत दूर से दिखता और दिखाता था किसी शाहंशाह की तरह
एक ही एवरेस्ट की पीठ पर सब चढ़ना चाहते थे एक दिन
कूबड़ ही एवरेस्ट का था समय का पैमाना बना हुआ
दूल्हे और बारात के आने की प्रतीक्षा और पूर्वाभ्यास में
कुछ लोग बैठकर ऊंघ रहे थे एवरेस्ट की पीठ पर
समय के सूनेपन को भरते हुए
शून्यकाल के नायक!
फेरीवाला लाल किले की दीवार पर खड़ा होकर
वहीं से झांक रहा था
जहां से सिर्फ पन्द्रह अगस्त को
राष्ट्र के नाम अपना आधिकारिक सम्बोधन करते हैं प्रधानमंत्री
बाजार में
यह एक मेले का एवरेस्ट था
जहां कुछ शराबी
अपने-अपने सिर पर अपने जीवन का बोझ उठाए
थकी हुर्इ यात्री भीड़ की पीठ पर
इतिहास की दिशा का पोस्टर चिपका रहे थे ।
बाजार में रेत
बाजार में होना था
और अपनी तरह
अपनी ही शर्तो पर होना था
साथ-साथ.....
मुर्दो के लिए कफन और ताबूत बेचने वाला भी
बाजार के एक छोर पर बैठा मुस्करा रहा था
पहाड़ के पत्थर और नदी के रेत बेचने वाला भी वहां बैठा मुस्करा रहा था
अपनी यादगार बिक्री और शानदार आमदनी पर
उड़ती हुर्इ रेत को बच-बचाकर चल रहे थे राहगीर
जिन्हें नहीं खरीदनी थी रेत
रेत को उड़ते हुए झेल रहे थे
झुझला रहे थे रेत पर....
रेत से अन्धी हुर्इ हवा चल रही थी कर्इ देखने वालो के विपक्ष में
रेत तो उड़ती ही है
एक बूढ़े राजगीर नें कहा-
बाजार में रेत का होना भी जरूरी है
रेत से गर्वान्वित या अपमानित होने जैसा कुछ भी नहीं है.....
संपर्क-
बी-1,श्री साईं अपार्टमेंट ,टडिया ,
करौंदी ,सुन्दरपुर,वाराणसी ,उ 0प्र 0 पिन -221005
मो 0-09451342730