राजेंद्र यादव मेरे जैसे बहुत से लेखकों के एकांत में बिलकुल निजी अंदाज में भी सुरक्षित हैं .मैं कई बार उनको जानबूझकर कुछ ऐसा लिख भेजता था -जिसे मैं अच्छी तरह जानता था -वे छाप नहीं पाएँगे .लेकिन वे उसे वापस भेजते समय अपना पत्र अवश्य भेजते थे .यद्यपि वे एक साहसी संपादक के रूप में लगभग कुख्यात ही थे .कुछ अधिक ही विचारोत्तेजक और विवादस्पद लिख कर मुझे उन्हें चिढ़ाने के अंदाज में चुनौती देना अच्छा लगता था ऐसा मैं प्रायः अभिव्यक्ति का सुख पाने और स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए करता था ,वे भी मेरे ऐसे लेखों का मजा लेते थे .काशीनाथ सिंह की काशी का अस्सी छपने के बाद भद्दी और अश्लील गालियों वाले कई पत्र अपने दराज से निकाल कर पढ़ने के लिए दिए थे .निश्चय ही उन्हें छापा नहीं जा सकता था . मुझे नहीं पता कि उन पत्रों को उन्होंने कभी काशीनाथ सिंह को भी पढ़ाया या नहीं ..जब मैंने हंस में भी कुछ लिखकर भेजना लगभग बंद ही कर दिया था .तब भी मै दिल्ली जाने पर उनसे अवश्य मिलता था .उनके ठहाकों और जिन्दादिली का साक्षात्कार करने .सब कुछ के बावजूद वे इस युग में कबीर बनने की सीमा जानते थे .सच बोलने के लिए कबीर से कम हिम्मत उन्होंने नहीं दिखाई .उनके सम्पादकीय उनके प्रशंसकों से अधिक उनसे चिढ़ने वालों द्वारा पढ़े गए हैं .धर्मयुग साप्ताहिक हिंदुस्तान और सारिका के बंद होने के बाद हिंदी पत्रकारिता का स्वर्णिम काल जैसे उनमें ही समां गया था .वे एक जगह पर अपना हंस लेकर प्रेमचंद से भी आगे निकल जाते हैं -वह है अपने सम्पादकीय कंधे पर इतिहास ढोने की ताकत .यहाँ उनकी प्रतिस्पर्धा प्रेमचंद से नहीं बल्कि महावीर प्रसाद द्विवेद्वी और अज्ञेय से है दलित और स्त्री विमर्श के तो संरक्षक और प्रायोजक संपादक ही थे ..उनकी स्मृति को सादर नमन .
जीवन का रास्ता चिन्तन का है । चिन्तन जीवन की आग है तो विचार उसका प्रकाश । चिन्तन का प्रमुख सूत्र ही यह है कि या तो सभी मूर्ख हैं या धूर्त या फिर गलत । नवीन के सृजन और ज्ञान के पुन:परीक्षण के लिए यही दृष्टि आवश्यक है और जीवन का गोपनीय रहस्य । The Way of life is the way of thinking.Thinking is the fire of life And thought is the light of the life. All are fool or cheater or all are wrong.To create new and For rechecking of knowledge...It is the view of thinking and secret of life.
रविवार, 30 अगस्त 2015
रविवार, 16 अगस्त 2015
रोता हुआ ईश्वर...
कल रात सपने में मैंने देखा कि ईश्वर रो रहा है
हाँ निस्संदेह ईश्वर ही था वह
उसका चेहरा मेरे पूर्वजों के चहरे से मिलता -जुलता था
वह रोता जा रहा था
और ऐसा लगता था कि वह भारी अवसाद में है
मुझे अपने सपने से ही डर लग रहा था
इस सोच से कि उसका अवसाद
किसी आत्महत्या के लिए सोचते हुए इन्सान जैसा
उसे भी निरीह और दयनीय बना रहा था
उसका चेहरा मेरे पूर्वजों के चहरे से मिलता -जुलता था
वह रोता जा रहा था
और ऐसा लगता था कि वह भारी अवसाद में है
मुझे अपने सपने से ही डर लग रहा था
इस सोच से कि उसका अवसाद
किसी आत्महत्या के लिए सोचते हुए इन्सान जैसा
उसे भी निरीह और दयनीय बना रहा था
मैंने ईश्वर से पूछा -तुम्हारी क्या प्राब्लम है !
तुम तो अमर ठहरे
तुम्हारी तो हत्या भी नहीं की जा सकती ....
मेरे गंभीर मजाक से वह और जोर-जोर से रोने लगा
बोला यही तो प्राब्लम है कि मैं अमर रहने के कारण
सिर्फ जिन्दा बने रहने के लिए अभिशप्त हूँ
पुरी दुनिया बनाने के बाद मैं बेमतलब और निरर्थक होता जा रहा हूँ
मेरा दुरुपयोग हो रहा है और ज्यादातर प्रार्थनाएँ
दूसरों की हत्याएं करने में साथ देने के लिए आ रही हैं ...
तुम तो अमर ठहरे
तुम्हारी तो हत्या भी नहीं की जा सकती ....
मेरे गंभीर मजाक से वह और जोर-जोर से रोने लगा
बोला यही तो प्राब्लम है कि मैं अमर रहने के कारण
सिर्फ जिन्दा बने रहने के लिए अभिशप्त हूँ
पुरी दुनिया बनाने के बाद मैं बेमतलब और निरर्थक होता जा रहा हूँ
मेरा दुरुपयोग हो रहा है और ज्यादातर प्रार्थनाएँ
दूसरों की हत्याएं करने में साथ देने के लिए आ रही हैं ...
मेरा बनाया इन्सान स्वयं तो पागल होता जा रहा है
मुझे भी पागल बना देगा
देखो बिना संवेदनशीलता और भावुकता के
किसी का भी अंतर्यामी होना संभव नहीं है
और उपेक्षित और अपमानित होकर कोई भी
संवेदनशील शख्स जिन्दा रहना नहीं चाहेगा ....
मेरा अमर होना ही मुझे अभिशप्त बना रहा है
मैं यह दिन देखने के लिए जिन्दा ही क्यों हूँ
जब कोई किसी को भी नहीं पूछता ...
मुझे भी पागल बना देगा
देखो बिना संवेदनशीलता और भावुकता के
किसी का भी अंतर्यामी होना संभव नहीं है
और उपेक्षित और अपमानित होकर कोई भी
संवेदनशील शख्स जिन्दा रहना नहीं चाहेगा ....
मेरा अमर होना ही मुझे अभिशप्त बना रहा है
मैं यह दिन देखने के लिए जिन्दा ही क्यों हूँ
जब कोई किसी को भी नहीं पूछता ...
मैं आत्महत्या भी नहीं कर सकता
मैं सोच नहीं प् रहा हूँ कि मैं अपनी इस अभिशप्त अमरता के लिए
मैं किसको गाली दूं
मुझे इन्सान की गाली सुन-सुन कर ईर्ष्या होती है
गाली देकर वह कितना हल्का और प्रसन्न हो जाता है
मैं किसको गाली दूं
मैं यह भी नहीं जानता कि मुझको किसने बनाया
कुछ लोगों को कहते सुनता हूँ कि मुझे इन्सान नें ही बनाया हैं
मैं इन्सान को इस तरह बनने-बनाने का दंड देना नहीं चाहता
यह सच है कि कोई भी अपने निर्माण का विध्वंस नहीं चाहता
मैं भी नहीं
इस दुनिया के विनाश की कल्पना से ही मेरे हाथ -पाव फूल जाते हैं
देखो मेरीभी भावुकता,आत्मीयता और संवेदनशीलता ही मुझे ईश्वर बनाती है
अन्यथा अजर-अमर तो प्रकृति भी है
मैंने इतने संवेदनशून्य और भावुकताविहीन मानवीय समय की
कल्पना नहीं की थी
मेरा अपना पर्यावरण लुप्त हो चूका है
फिर भी मैं जिन्दा हूँ
अपनी इसी अभिशप्त नियति पर मैं रो रहा हूँ ..
मैं सोच नहीं प् रहा हूँ कि मैं अपनी इस अभिशप्त अमरता के लिए
मैं किसको गाली दूं
मुझे इन्सान की गाली सुन-सुन कर ईर्ष्या होती है
गाली देकर वह कितना हल्का और प्रसन्न हो जाता है
मैं किसको गाली दूं
मैं यह भी नहीं जानता कि मुझको किसने बनाया
कुछ लोगों को कहते सुनता हूँ कि मुझे इन्सान नें ही बनाया हैं
मैं इन्सान को इस तरह बनने-बनाने का दंड देना नहीं चाहता
यह सच है कि कोई भी अपने निर्माण का विध्वंस नहीं चाहता
मैं भी नहीं
इस दुनिया के विनाश की कल्पना से ही मेरे हाथ -पाव फूल जाते हैं
देखो मेरीभी भावुकता,आत्मीयता और संवेदनशीलता ही मुझे ईश्वर बनाती है
अन्यथा अजर-अमर तो प्रकृति भी है
मैंने इतने संवेदनशून्य और भावुकताविहीन मानवीय समय की
कल्पना नहीं की थी
मेरा अपना पर्यावरण लुप्त हो चूका है
फिर भी मैं जिन्दा हूँ
अपनी इसी अभिशप्त नियति पर मैं रो रहा हूँ ..
शनिवार, 15 अगस्त 2015
गणतंत्र
स्वाधीनता दिवस पर इस बार मैं कुछ नहीं बोला सिर्फ दूसरों का देशराग सुनता रहा न बोलने का एक कारण यह भी था कि मुझे जनतंत्र और गणतंत्र के शब्दार्थ में और व्यवहार में अंतर लग रहा है .गण समूह वाची संज्ञा है .यदि हमारा गण तंत्र दल -तंत्र या समूह तंत्र होने का अर्थ वहन कर रहा हो तो सही ही है ..हम सिर्फ अपना मत ही जन या व्यक्ति के रूप में देते हैं जबकि पूरा राजनीतिक प्रशासनिक ढांचा गण अर्थात समूह वाद को बढ़ावा देता है .पिछले आम चुनाव में मत पार्टी को ध्यान में रखकर दिए गए थे और इस आम चुनाव में सिर्फ मोदी यानि एक व्यक्ति को ध्यान में रखकर .इसका मतलब यह हुआ कि जनता नें सांसदों के गुणदोष पर ध्यान ही नहीं दिया .ऐसा ही लगभग कांग्रेस और दूसरी पार्टियाँ भी करती हैं .वे जनसेवा की संस्कृति को बढ़ावा देने वाला कोई सर्वे नहीं करती हैं .प्रत्याशी बनने की योग्यता का आधार किसी प्रतिष्ठित नेता का पूर्व परिचित होना है .बड़े नेता जनसेवा के आधार पर नहीं बल्कि चाटुकारिता और स्वामिभक्ति के आधार पर लोगों को टिकट दिलाते रहते हैं .इन्ही तथ्यों के आधार पर मैं अपने देश की व्यवस्था को जनतांत्रिक नहीं बल्कि गणतांत्रिक मानता हूँ .इस बिंदु पर आपका क्या ख्याल है !
शनिवार, 8 अगस्त 2015
शांति-दर्शन
सबसे पहले उनके ईश्वर को क्षमा करें
फिर सारी दुनिया को .....
ईश्वर जो उनके दर्शन के अनुसार
सारे बलात्कारियों और हत्यारों में
प्रेरणा रूप में मौजूद था ....
उस ईश्वर को ...जिसकी इच्छा के बिना
हिलता नहीं है एक भी पत्ता
ईश्वर जो वही चाहता रहा है
जिसे बलपूर्वक चाहती और कारित करती रही है
समय की सत्ता ....
क्षमा करना ही होगा उस ईश्वर को
और उसे बदल जाने के लिए देना होगा अतिरिक्त समय
क्योकि ईश्वर
जो न सिर्फ अदृश्य है बल्कि चालाक
और उसकी अघोषित सहमति और लिप्तता के बावजूद
कभी भी तलाशे नहीं जा सकते किसी हथियार पर
उसकी उँगलियों के रक्तरंजित निशान
यदि प्रायश्चित करना चाहे
तो उस ईश्वर को मेरी और से क्षमा
जिसने इस धरती पर अपने बीजे सपनों के लिए
लड़ रहे हत्यारों की फौज खड़ी कर दी है -
अचेतन स्वप्न एवं नींद में
हत्या करने वालों की जालिम फौज ....
फिर सारी दुनिया को .....
ईश्वर जो उनके दर्शन के अनुसार
सारे बलात्कारियों और हत्यारों में
प्रेरणा रूप में मौजूद था ....
उस ईश्वर को ...जिसकी इच्छा के बिना
हिलता नहीं है एक भी पत्ता
ईश्वर जो वही चाहता रहा है
जिसे बलपूर्वक चाहती और कारित करती रही है
समय की सत्ता ....
क्षमा करना ही होगा उस ईश्वर को
और उसे बदल जाने के लिए देना होगा अतिरिक्त समय
क्योकि ईश्वर
जो न सिर्फ अदृश्य है बल्कि चालाक
और उसकी अघोषित सहमति और लिप्तता के बावजूद
कभी भी तलाशे नहीं जा सकते किसी हथियार पर
उसकी उँगलियों के रक्तरंजित निशान
यदि प्रायश्चित करना चाहे
तो उस ईश्वर को मेरी और से क्षमा
जिसने इस धरती पर अपने बीजे सपनों के लिए
लड़ रहे हत्यारों की फौज खड़ी कर दी है -
अचेतन स्वप्न एवं नींद में
हत्या करने वालों की जालिम फौज ....
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